नासूर
नासूर
कोई भी रिश्ता यूँही नासूर नहीं बनता ,
कुछ हिस्से दारी हमारी अपनी भी होती है ।
बड़ा आसान है कह देना कि काट दो,
पर क्या कभी सोचा कि नासूर क्यों बना?
रिश्ते का बनना ,नासूर बन फिर रिसना,
क्या प्रयास किया पहले महरम लगाने का ?
रिश्ता बनता तभी है जब दोनों तरफ से स्वीकीर्य हो ,
नासूर कहना तो बात एक तरफा हुई ना!
रिस्ते रिश्ते को नासूर बनने से पहले ही,
प्यार रूपी एमसील का जोड़ तो लगाओ।
साइंस के दौर में जब कैंसर का इलाज है,
तो रिश्ते का नासूर बनना कहाँ लाज़मी है ?
समय रहते यदि हो जाए रिश्तों की तुरपाई ,
तो शायद रिस्ता रिश्ता न बन पाए नासूर भाई ।
यही संकल्प ले लें आज
ना नासूर बनने दें कोई रिश्ता,
हर घर खुशी से मिले चहकता।
नीरजा शर्मा