नारी
नारी ..
लिखे गये काव्य हजारों तुम पर
कभी सौंदर्य पर ,कभी हुनर पर ।
कभी चालबाजियों पर
कभी उन साजिशों पर।
लोगों ने बनाकर कहानियाँ
हवा दी तुम्हारी फित़रत को ।
सास-बहु के रिश्ते से लेकर
जहर भरा हर अपनत्व में।
मकसद था उस कहावत को
सच साबित करना ..
औरत ही होती है दुश्मन औरत की।
और ..दुनियाँ ने भी मढ़ दिया दोष
पोत के कालिख विचारों की .
कर दिया सिद्ध दुश्मन नारी को ।
पर सोचा कभी किसी ने !!!!
सुबह से साँझ तक जूझती है ,
तुम्हारे लिये हर खुशी बटोरती है ।
वक्त पड़े तो सबक सिखाती है ।
वह इतनी गलत कैसे हो सकती है??
पाखी