नारी
नारी
जग की आधी आबादी पर, नारी की हिस्सेदारी।
पाने को पर आज तरसती, फिरती है मारी मारी।।
दुनियाभर में सबसे दूभर, नारी जीवन जीती है।
जहर का प्याला जीते जी ही, घूंट घूंट कर पीती है।।
संकट में नारी आ जायेगी, तो नर की खैर नहीं।
गाड़ी के पहिये आपस में, करते बिल्कुल बैर नहीं।।
चीरहरण नारी का रोको, आज जमाना बदल गया।
नवयुग में नवगीत लिखो तुम, कहो पुराना बदल गया।।
दुनिया के दायित्व बता दो, क्या उसके कर्तव्य बता।
नारी के हितचिंतन वाले, फलकारी वक्तव्य बता।।
नहीं पिता के घर में उसको, भाइयों से प्यार मिले।
मुश्किल जीना हो जाता जब, नालायक ससुराल मिले।।
नारी होकर भाभी भी जब, घर में आने से रोके।
सबक सिखाकर बात बात पर, सबके सब मिलकर टोके।।
एक अकेली एक तरफ हो, एक तरफ सारी दुनिया।
बूढा बाप सोचता केवल, कैसे जीतेगी मुनिया।।
चहूँदिशा से इक अबला पर, कहर अगर बरपाएँगे।
मनोदशा का अध्ययन करने, कौन मनोविद लाएंगे।।
माँ के घर में भाई की करनी पड़ती चमचाई है।
सास ससुर के घर में अक्सर, होती हाथापाई है।।
पति अगर नाकारा हो तो, घर का बोझ उठाती है।
मुश्किल को भी कान पकड़कर, बैठक रोज कराती है।।
अपनी हिम्मत से ताकत से, अपना जोर लगाती है।
आने वाली मारग की हर बाधा से टकराती है।।
नर के हाथों से उत्पीड़ित, दीन दशा अबला तू है।
दुनिया बदली, तू न बदली, कारण बतला दे क्यूँ है।।
मूलभूत तथ्यों पर हमने, चिंतन करना छोड़ दिया।
सम्बन्धों की असली डोरी, को स्वारथ ने तोड़ दिया।।
अपना तू अस्तित्व बचाले, नारी तू कमजोर नहीं।
अपनी पर गर आ जाये तो, समझो नर की ठौर नहीं।।
काली दुर्गा रणचंडी वो, जब जब भी बन जाती है।
दुष्ट दनुज पर आग उगलती, जब भौहें तन जाती है।।
तब तब उसे मनाने ईश्वर, को आना ही पड़ता है।
त्राहिमाम का घोर नाद सबको गाना ही पड़ता है।।
@सरल