नारी
नारी
नारी क्या है जटिल पहेली खुद भी खुद को नहीं जानती..
सबला है पर जानबूझकर, खुद को सबला नहीं मानती…
सृजन उसी से पोषण उससे पालन भी उसके ही दम से..
क्या जीवन जीना संभव था बिन उसके ज्यादा या कम से..
वो हम सा ही खुद को जीती, प्रेम न होता रार ठानती…
सबला है पर जानबूझकर, खुद को सबला नहीं मानती…
निर्मल सरिता जानबूझकर खारे सागर में मिल जाती..
हम सी होती खुद पर दंभित अपना ना अस्तित्व मिटाती..
सागर क्या, कुछ भी ना होता मेघ घटा ना छत्र तानती…
सबला है पर जानबूझकर, खुद को सबला नहीं मानती…
सब शक्ति का श्रोत वही है, मां दुर्गा महाकाली वो है..
ज्ञान श्रोत आधार सरस्वती, कमनीया मधु प्याली वो है..
हम को धरती, जनती, मरती तब भी हम पर श्रेय वारती..
सबला है पर जानबूझकर, खुद को सबला नहीं मानती…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान