नारी
नारी
खूब करें अपमान नारी का , झूठे वादे झूठी क़समें
नारे बाज़ी भी करते हैं , कैसी हैं थोथी ये रसमें।
आपस में जो बात भी करते, गलियाते माँ बेटी को
बैर भाव में जम कर होती, ज़ख़्मी माँ , बेटी ,बहनें ।
लाज शर्म की हद न रहती, भूल जायें सारे संसकार
बेटी बहु को गाली देते , बरसे झर झर गंदे नगमें।
कैसी राह चलें मेरे भाई, शर्मसार होती नारी
हमने कयूं है जनम दिया इन्हें , दुख लगा हमको लगने।
अनाचार यह कब थम पाये, कोई आसार नहीं दिखता
न जाने कयूं पुरूष समाज को , गाली देना ही भाये।