नारी
नारी कोमल सी काया है,
ममता की प्यारी छाया है,
नर भी उपजें नारी से ही,
नारी ने विश्व रचाया है।
कन्या बनकर उसने हरपल,
बाबुल का गुल महकाया है,
बनकर पत्नी हर्षित होकर,
साजन का साथ निभाया है,
माँ बनकर अपने बच्चों को,
प्यारा आँचल ओढ़ाया है,
चीज़ नहीं है नारी कोई,
यह क्यूँ न समझ में आया है,
जिसने जब चाहा नारी से,
अपने दिल को बहलाया है,
न करो यूँ अपमानित उसको,
दुर्गा का रूप समाया है।
रूप धरा काली का जब भी
सब कुछ प्रलय से ढाया है।।
By :Dr Swati Gupta