नारी
नारी तुम
श्राप नही वरदान हो
अपना ही नही
सबका मान हो ,
खुद को पहचानों
खुद को जानो ,
कोई भी सोच
तुमको डरा नही सकती
तुमको अपने पथ से
डिगा नही सकती ,
पाँव अगंद सा बना लो
शरीर शिखर सा बना लो ,
तुम्हारे वेग से
पवन भी थम जाये ,
तुम्हारे तेज से
सुरज भी डर जाये ,
अपनी शितलता से
मजबूर कर दो
चाँदनी को सोचने पर ,
अपनी ममता से
चूर कर दो
दिल जो हो पत्थर ,
तुम प्रेम हो
तुम प्यार हो
गीली मिट्टी को देती आकार हो ,
हमारी नींव का
मजबूत आधार हो ,
सम्पूर्ण सृजन में
सहयोग है तुम्हारा ,
समस्त सृष्टि को
तुमने है सवाँरा ,
तुम्हारे बिना
सर्वस्व है अधुरा ,
तुम्हीं लाती हो
रोज नया सवेरा ,
तुम्हारा श्रृणी है
नभ – थल – जल ,
तुम्हें ही बदलना है
आनेवाला कल ,
इस आनेवाले कल में
उड़ना हैं पंख पसार ,
उम्मीदें हैं पूरी
खुशियाँ हैं अपार ,
इन्हीं खुशियों से सींचो
अपनी तुम धरा ,
अपनी सोच से कर दो
इस भू को तुम हरा ,
हर पौध हर फसल
तैयार हो जब कल ,
उस पर लदा हो
तुम्हारी सोच का फल ,
देखना तुम !
एैसा होगा चमत्कार
बदल जायेगा पूरा संसार ,
तुम फिर से विराजोगी
अपने सिंहासन पर
फिर से होगी सबकी
तुम पर श्रृद्धा अपार !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/04/13 )