नारी
सबकी चर्चित कथा, मैं ईश का रहस्य वरदान
पर मैं भी हूँ तुम सबमें एक समान।
आकाश औ पृथ्वी के बीच क्यों रहस्य बनू मैं
जब अम्बर अवनी क्षितिज भी है मेरे पास।
नहीं चाहिए मुझको उपमा, उपमेय, अलंकार
नारी की है ए कातर चित्कार।
अब न लिखो मुझपे ऐसी कहानी
“आँचल मे दूध आँखो मे पानी”।
न मैं अमल न मैं कमनीय गात
न रूप का रसमय निमन्त्रण।
न मैं पद्मावत की पद्मावती
न महादेवी की दु:खद प्रियतमी।।
शैल निर्झर नहीं मैं जो जलनिधि मे मिलूँगी।
हूँ बहती सरिता बहती ही रहूँगी।
स्वच्छंद हूँ….स्वर्ण प्रतिमा में न ढालो मुझको
गगन की शून्यता में आवाज अपनी बिखेरुँगी।।