नारी
हे नारी, तू कितनी भोली
तू कितनी न्यारी है।
रणचण्डी काली होकर भी,
तू जग को प्यारी है।।
रूप अनेकों है तेरे,
तू प्रेम की मूरत है ।
सौ बार नमन मन हे शक्ति, स्वरूपा
तू जग की महतारी है।।
तू सीता है तू राधा है,
तू सावित्री, तू मीरा है।
सबला होकर बन गई अबला
तू सब की हितकारी है ।।
तू ही जननी तू ही सहोदरी,
संग सहचरी बन चलती है।
पीड़ा सहती ऊफ न करती
हे नारी तू अवतारी है।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव” पूनम”