नारी
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर समस्त नारी जगत को समर्पित ये रचना।
नारी
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होती बिदा पिता के घर से
अनजानी सी राह चलने को
सफर होगा कांटो भरा
मुस्कराते हुए सहने को।। 1।।
सारा जहां अनजानों से भरा
अनजानों को अपनाने को
कैसी शक्ति दी तूने भगवान
स्त्रीत्व को समझने को।।2।।
ममता की मूरत कहलाती
कभी रण चंडिका कहने को
अदम्य साहस की मूरत वो
अबला मत समझो नारी को।।3।।
रिश्ते पिरोती जाए जैसे एक माला हो
सम्हलती वो माला जैसे एक बाला हो
पहुंचे ठेस अपनों को फिर नदी की धारा हो
आंच अपनों पर आए फिर बने जो ज्वाला हो।।4।।
सोच समझ के बनाया है इसको
भगवन की लीला न्यारी जो
करता हूं नमन मैं समस्त नारी को
कुटुंब की आधार स्तंभ है सबकी दुलारी जो।।5।।
मंदार गांगल “मानस”