नारी है नारायणी
नारी तो है नारायणी,नर से नारी है महान।
नव्य रूप नित भव्य ,वो ईश्वर का वरदान।।
धर्म-कर्म के पथ आरूढ़ अद्भुत कार्य सुजान।
आंचल ममता की छाया,कंप्यूटर कर संधान।
सहस्र रूप में जीकर नारी,करें विश्व अभिमान,
नव्य रूप नित भव्य,वो ईश्वर का वरदान ।।
कोमल है काया भली, कुशाग्र बुद्ध कल्याण।
जन्मदात्री जननी है ,विविध रूप पहचान ।
उर्वरा शक्ति वो धरणी,करती समाज निर्माण,
नव्य रूप नित भव्य,वो ईश्वर का वरदान।।
निंदा अपमान सहकर ,करें निजत्व कुर्बान ।
सहचर्य प्रेम हृदय पावन,गंगा निर्मल नादान।
मां,बहन,भार्या,सखी, पल में दुर्गा अवतार,
नव्य रूप नित भव्य वो ईश्वर का वरदान।।
स्वर्णिम युग की परिचायक,अन्वेषक विद्वान।
लहरों से खेले अठखेली,आकाश चूमती यान।
मोह माया से निविर्कार सक्षम सशक्त सबला ,
नव्य रूप नित भव्य वो ईश्वर का वरदान !!
धूमकेतु अंधियारे का स्वर्णिम आभा विहान।
सिद्ध हस्त गृह सर्जना, प्रीत प्रिय की प्रान।
प्रेम समर्पण है प्रिये!नहि दीन समझ नादान,
नव्य रूप नित भव्य वो, ईश्वर का वरदान ।।
मैं अष्टभुजी धरणी, देदीप्यमान रूप महान।
यज्ञ देव पूजा समग्र,आधुनिकता पूर्ण ज्ञान।
तपकर कुंदन गया तराशा,हीरक सा भगवान ,
नव्य रूप नित भव्य वो ईश्वर का वरदान ।।
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