नारी सशक्तिकरण
मैं नारी हूँ,
पर सदियों से किस्मत की मारी हूँ
आज भी किया जाता है प्रताड़ित
होती हूँ हवस का शिकार
कभी चौराहों पर
कभी गलियों में
पर दब जाती है मेरी चीख
फिर तलाशती हूँ अपना अस्तित्व
अनुत्तरित प्रश्नों को
क्या? यही है नारी सशक्तिकरण
जहाँ मरती है प्रतिदिन बेटियाँ
मेरे ही जुल्मों पर होती है राजनीति
बोले जाते हैं
लंबे-लंबे वक्तव्य
निकालते हैं जुलूस
लेकर तख्तियाँ
जस्टिस फॉर……..
पर क्या होता है कोई लाभ
फिर वही अत्याचार
छीना जाता है
जीने का अधिकार
क्या मर चुकी है मानवता?
वह नारी जिससे
रचित है सृष्टि
वही क्यों होती प्रताड़ित
क्या इसका नही है कोई स्थायी निदान?
अगर नही तो
फिर कैसा? नारी सशक्तिकरण।