नारी सम्मान
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मां सबको हनुमत कहे, देवी कहते राम।
संबंधों से इतर था, नारी का एक मुकाम।।
कलयुग युग है अर्थ का, जन जन बसता काम।
मोक्ष की है चिंता किसे, अब धर्म हुआ बदनाम।।
रिश्तों को हैं बेचते, यूं खुद के रिश्तेदार।
अर्थ के खातिर हो रहे, दो धारी तलवार।।
अपने अपनों को छले, ले रिश्तों का नाम।
मर्दों का है षणयंत्र सब, है औरत बदनाम।।
नारी की इज्जत नहीं, तो समझो रावण राज।
छल नारी संग हो जहां, वह है मृतक समाज।।
मां पत्नी हो या बहन बुआ दादी मौसी या बेटी हो।
‘संजय’ सुखी समाज वही जो स्त्री को गौरव देती हो।।
जै श्री राम