नारी शक्ति
लाखों रावण जले हैं कई दशहरे,
ज़ख़्म सीता के अब भी हरे के हरे… 2
अब भी सीता की अग्नि परीक्षा वही,
हाथ जोड़े खड़ी द्रोपदी है कहीं
पूछती मैं सदा अम्बे माँ तू बता
बन शिला वो चरण से यूँ कब तक तरे
ज़ख़्म सीता के अब भी हरे के हरे.. 2
नारी मूरत रही त्याग, बलिदान की
विष जो पीती रही वर्षों अपमान की,
रीति का बोझ अपने ही सिर पे धरे
ज़ख़्म सीता के अब भी हरे के हरे.. 2
आज ललकारती हूँ मैं जागो बहन,
बनके हनुमान तुम कर दो लंका दहन
कर दो शत्रु दमन रूप चंडी धरे,
ज़ख़्म सीता के कुछ तो भरें अब भरें….
” आखिर कब तक सीता को प्रभु राम बचाने आयेंगे,
द्रोपदी की लज्जा को कब तक श्याम बचाने आयेंगे,
रण चंडी का रूप धरो, निज शक्ति को पहचानो तुम
कब तक आस करोगी कि भगवान बचाने आयेंगे “