नारी शक्ति जागो
क्यूँ हवस का सामान समझी जाती हैं नारियाँ!
क्यूँ भोग्या की दृष्टि से देखी जाती हैं नारियाँ!
क्यूँ दाग ये लगता है पुरुष समाज पर!
क्यूँ पुरुष प्रधान समाज का दंश झेलती हैँ नारियाँ!
क्यूँ दरिंदगी दिखा जाता है कोई नारी पर!
क्यूँ निर्दोष हो ऐसा दंड झेलती हैँ नारियाँ!
क्यूँ सिसकती है कोई नारी बंद घरों के कोनों में!
क्यूँ दबा देते हैं अपने ही आवाज उसकी!
क्यूँ जन्म से पहले ही मार दी जाती हैं बेटियाँ!
क्यूँ अभागन सा जीवन बिताती हैं नारियाँ!
कर लेती है अगर प्रेम किसी से कभी अभागन वो!
सुला देते हैँ नींद मौत की कोई उसके अपने ही!
गूँजती थी किलकारियाँ कभी जिस आँगन में उसकी!
उसी आँगन को शवगाह बना देते हैं उसके अपने ही,
है वही देश ये होते थे जहाँ नारी स्वयंवर!
है वही देश ये जहाँ पैदा हुई थी एक सावित्री भी!
जिसने चुना था सत्यवान सा अपने लिए वर कोई!
मानते हैं जो रूढ़िवादी परंपराओं को!
क्यूँ दोगलापन दिखाते हैं फिर उन्हें निभाने में;
नहीं नहीं अब नहीं स्त्रियाँ सह पाएँगी;
गर मैला करेगा दामन उसका कोई आततायी तो,
भूल पाएगा न वो सबक ऐसा सिखाएँगी!
ले हाथ में आत्मविश्वास को बढो़ आगे नारियाँ!
इस पुरुष समाज की अब मत सहो नादानियाँ!
आग को सीने में रख तूफान को जज्बात में;
कर लो दुनिया मुट्ठी में बिजली सी भड़का जवानियाँ।
भूल मत सावित्री तो दुर्गा भी तो है तू!
कस्तूरबा छुपी तुझमें लक्ष्मीबाई भी तो है तू!
मत सहन कर तू अब किसी अत्याचार को;
हाथ में और सीने में भड़का तू अब प्रतिकार को।
नीचता की हद अगर पार कोई कर जाए तो!
देर न कर रोक उसके अब हर वार को।
प्रेम तुझमें समुद्र सा तो क्रोध भी धधकता ज्वाल सा!
मोम है हृदय अगर तो द्वंद्व भी करवाल सा।
अपना लिया रूप काली का तो संसार सहम जाएगा!
प्रकोप के तेरे आगे ये समस्त संसार झुक जाएगा।
।।जय नारी शक्ति।।
सोनू हंस