नारी शक्ति के नौरूपों की आराधना नौरात एव वर्तमान में नारी का याथार्त
नारी शक्ति के नौ रूपों कि आराधना नौरात एवं वर्तमान में भारत में नारी का यथार्थ –
किसी भी युग या समाज के अस्तित्व कि कल्पना ही नही की जा सकती है ब्रह्म भी बिना नारी शक्ति के अधूरा है यदि सनातन में ब्रह्मा ,विष्णु ,शंकर देव है तो सरस्वती,लक्ष्मी ,पार्वती त्रिदेवियों नारि शक्ति बिना देव शक्ति संतुलित नही होती चूंकि ब्रह्म सत्ता निरपेक्ष एव विभेद रहित होती है अतः पूर्ण ब्रह्म को अर्ध नारीश्वर कहा जाता है।
जितने भी अवतार या प्रवर्तक हुये है या जिनके द्वारा समय समाज युग को नई दिशा दृष्टि प्रदान कि गई है उनका अस्तित्व ही नारी से है।
चाहे जैन धर्म हो ,बौद्ध धर्म हो, क्रिश्चियन ,हो या सिख धर्म हो या स्लाम हो जिस समय समाज मे नारी को उचित सम्मान् नही मिलता एव उसे मात्र सृष्टिगत परम्परा का एक अनिवार्य अंग तक ही सीमित रखा जाता है उस समाज के पतन हो जाता है।
धर्म संविधान एव समाज मे नारी कि विशिष्टता को परिभाषित कर उसे विशेष स्थान प्रदान किया गया है।भारत मे नारी गौरव का
नारी गौरव का भारतीय इतिहास —
भारत मे नारी को सदैव उच्च स्थान प्राप्त रहा है यहां तक कि ईश्वर के स्मरण से पूर्व उनके नारी अंश को प्रथम स्मरण करना अनिवार्यता है लक्ष्मी नारायण,सीता राम ,राधेकृष्ण आदि आदि पूजन मे भी बराबर या उच्च स्थान देकर किया जाता है ।
भारत मे वैदिक काल मे नारी का बहुत सम्मान् था और (नारी जत्र पूज्यते रमन्ते तंत्र देवता ) का आदर्श ही समाज मे नारी कि नैतिकता ,मर्यादा,स्थान को परिभाषित एव प्रमाणित करती है जिसके कारण
गार्गी,अपाला,घोषा,मैत्रेयी ,आदि नारियों ने नारी गरिमा गौरव महत्व से समय समाज युग को नई ऊंचाई पहचान प्रदान किया जो वर्तमान में भी नारी समाज के लिए आदर्श एव अनुकरणीय है।
भारत मे नारी कि स्थिति—
सन 1947 में स्वतंत्रता के समय भारत कि कुल जन संख्या 37.6 करोड़ थी एव साक्षरता दर 18 प्रतिशत जिसमे महिलाओं कि साक्षात्कार डर 6 प्रतिशत थी ।लगभग 1234 वर्षों के उथल पुथल एव अराजक शासन व्यवस्थाओं से मुक्त हो भारत आजाद हुआ और राष्ट्र एव समाज के निर्माण में महिलाओं की बराबरी एव बराबरी की भागीदारी के लिए संविधान निर्माण में व्यवस्थाओं का प्राविधान किया जिसमे समय समय पर समय एव आवश्यकता अनुसार संसोधन कि व्यवस्था है को प्रस्तुत कर नारी समाज के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने का प्रायास किया जिनमे कुछ प्रमुख निम्न है —–
महिला सम्मान अधिकार अनुच्छेद -14,राज्य द्वारा कोई भेद भाव नही अनुच्छेद -15,अवसरों में समानता अनुच्छेद-16,समान कार्य समान वेतन अनुच्छेद-39,अपमान जनक प्रथा परित्याग-51,प्रसूति सहायता-अनुच्छेद-42, अनैतिक व्यपार निवारण एक्ट-1956 ,दहेज प्रतिशोध अधिनियम-1961,कुटुम्ब न्यायालय-1984, सती निषेध -1947, राष्ट्रीय महिला आयोग -1990,गर्भ धारण पुर्लिंग चयन प्रतिरोध -1994,घरेलू हिंशा अधिनियम -2005, विवाह प्रति शेत अधिनियम-2006,भारतीय महिलाओं को अपराध के विरुद्ध सुरक्षा संसोधन -2013,आदि आदि अनेको प्राविधान एव संशोधन है एव किये जाते है एवं समयानुसार जिसकी आवश्यकता होती है जिसके माध्यम से भारत कि वैदिक व्यवस्थाओं में नारी सम्मान् गौरव आत्मविश्वास कि पुनर्स्थापन है जो आक्रांताओं के आक्रमण एव शासन से वर्णसंकृत हो चुकी थी ।
स्वतंत्रता के बाद नारी शिक्षा–
भारत को स्वतंत्रता भी भय एव असमंजस कि स्थिति में प्राप्त हुई सन 710 से 1857 तक का आम भारतीय समाज जो राष्ट्र कि रक्षा कुछ हज़ार कबीलों से नही कर सका और माँ भारती को लूटने के लिये उन कसाईयो के समक्ष मूक दर्शक बना रहा जिनका मानवता या मानवीय मुल्यों से कोई वास्ता नही था जिसके कारण 1234 वर्षों तक स्वय अपमान का विषपान करते रहे तो अपने समाज कि क्या रक्षा करते जिसमे नारी समाज प्रमुख था जिसकि परिणीति स्वतंत्रता के समय धार्मिक उन्माद में द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को स्वीकार करना पड़ा जिसका प्रभाव सम्पूर्ण समाज एव राष्ट्र पर पडा नारी समाज भी अछूता नही रहा स्वतंत्रता के समय रक्तपात एव दहशत अभी तक इतिहास को कलंकित करता है एव करता रहेगा ।
भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद सर्व प्रथम कन्या शिक्षा को प्राथमिकता से लागू करने कि कोशिश किया जिससे कि भरतीय नारी में आत्मविश्वास, साहस ,का सांचार कर उनके स्वयं के राष्ट्र समाज मे महत्व को प्रत्यक्ष किया जा सके एव उन्हें उनकी समान सहभागिता के लिये जागृत एव जिम्मेदार बनाया जा सके जिसका परिणाम भी परिलक्षित होने लगा अब जबकी भारत अपनी स्वतंत्रता का 75 वां वर्ष अमृतमहोत्सव के रूप में मना अमृत काल मे प्रवेश कर चुका है भारत मे कुल साक्षरता 84.7
प्रतिशत है जिसमे महिलाओं कि साक्षरता दर 70.31 प्रतिशत है शिक्षा के हर आयाम ऊंचाई पर भारत कि नारी शक्ति का परचम लहरा रहा है ।
प्राइमरी शिक्षा में 100 पुरुषों पर 183 महिलाएं पढा रही है अपर प्राइमरी में 100 पुरुषों पर 83 महिलाएं है सेकेंडरी सीनियर सेकेंडरी में 100 पुरुष पर 73 महिलाएं है ।भारत मे आजादी के 75 वर्षों बाद भी देश की आधी आबादी नारी शक्ति मात्र 18 प्रतिशत ही काम काजी है जिनकी शिक्षा स्वस्थ,एव कृषि में भगीदारी अधिक है।
भरतीय नारी समाज की राजनैतिक चेतना एव भागीदारी—–
स्वतंत्रता के बाद भारत मे नारी समाज मे राजनीतिक जागरुकता को समझने के लिए राष्ट्र के आस पास यानी क्षेत्रीय स्तर पर नारी कि अद्यतन स्थिति को तदुपरांत विश्वव्यापी स्थिति को संक्षेप में समझना आवश्यक है भारत के पड़ोसी देश लंका,बंग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, आदि ऐसे राष्ट्र है जहाँ के लोकतांत्रिक शैशव काल मे ही नारी शक्ति शिखरतम हो गयी जैसे माओ भंडारनायके, इन्द्रीरा गांधी,बेनजीर भुट्टो,शेख हसीना वाजेद,ख़लीदा जिया ,इसमें विद्या देवी जी का अति विशिष्ट महत्वपूर्ण स्थान है जिन्होंने अवश्य अर्श से फर्श की ऊंचाई तय किया शेष नारी गरिमा महिमा जो भी दक्षिण एशिया कि है उनको राजनीतिक विरासत मिली थी समाज कि साधारण नारी कि तरह संघर्ष से ये शिखरतम नही थी जिसके कारण इन राष्ट्रों में आम नारी शक्ति के साहस संघर्ष पर कोई गहरा प्रभाव नही पड़ा ।
भारत मे आम पृष्ठभूमि से संघर्ष एव चुनौतियों से लड़ती जिन नारी शक्तियों ने राजनीतिक शिखर प्राप्त किया उनमें जयललिता, मायावती, ममता,आदि है जिनको विरासत में कुछ भी प्राप्त नही था जिनके प्रभाव प्रेरणा से भरतीय नारिशक्तियों में राजनीतिक आकांक्षाओं ने उड़ान भरना शुरू किया और उनमें विश्वास का सांचार किया ।
राजनीतिक रूप से आंकड़े जो स्प्ष्ट करते है पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण है जिसके कारण पंचायतो में सदस्य और अध्यक्ष 59000 से अधिक महिलाएं है भारतीय संसद में मात्र 14.36 प्रतिशत महिलाएं है देश कि बिभन्न राज्य विधान सभाओं में कुल 4896 सदस्यों में मात्र 418 महिलाएं है केंद्र सरकार में कुल 07 महिलाएं मंत्री है राज्य सरकारों के आंकड़े उपलब्ध नही है फिर भी 10 प्रतिशत महिलाएं राज्य सरकारों में मंत्री है यानी आबादी आधी एव राजनैतिक हिस्सेदारी आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद भी मात्र औचारिक यह नारी समाज एव आज के समाज के लिए सोचने समझने का विषय है।
1947 में आजादी के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी,सुषमा स्वराज्य,सुमित्रा महाजन,अम्बिका सोनी,राजमाता सिंधिया, नंदिनी सतपथी ,मीरा कुमार,गिरजा व्यास आदि ऐसे नाम है जिन्होंने भारत मे नारी शक्ति को नई दिशा दृष्टि प्रदान कर राजनीतिक जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया तो वर्तमान में निर्मला सीता रमण, स्मृति ईरानी, प्रियंका गांधी ,आदि द्वारा अपनी अति महत्वपूर्ण उपस्थिति से भारतीय नारी समाज मे नाई चेतना उत्साह का सांचार प्रवाह किया नित्य निरंतर करने का प्रायास किया जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया कि कैबिनेट में 12 मंत्री है जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वहाँ नारी कि स्थिति क्या है जबकि आस्ट्रेलिया कि कुल आबादी दो करोड़ दस पन्द्रह लाख ही है।
लगभग 1234 वर्षो कि आंशिक एव पूर्ण गुलामी के बाद भारत को आजादी मिली 1234 वर्षो के काल खंड में भारतीय समाज की वास्तविक पहचान समाप्त हो चुकी थी सातवी ईसवी तक भारत कि भाषा संस्कृत एव समाज सांस्कारिक था मगर आक्रांताओं की बर्बरता के समक्ष उनकी आयातित संस्कृत को कब आत्म साथ कर लिया और अपने मूल संस्कृति को भूल गए पता ही नही चला मुगलों कि गुलामी के दौर में एक कहावत प्रचलित थी (पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह कुदरत का खेल) स्प्ष्ट है उस दौर में अरबी फारसी के जानकार ही विशिष्ट विद्वान होते थे बाद में ब्रिटिश हुकूमत कि गुलामी ने अंग्रेजी कि अहमियत बढ़ा दी परिणाम आज विल्कुल साफ तौर से देखा जा सकता है कि आज अंग्रेजी अंग्रेजियत भारत कि रगों में दौड़ रहा है जबकि मुगल कालीन फ़ारसी उर्दू अरबी आज भी न्यायालयों में प्रयोग कि जाति है यह तो मात्र प्रत्यक्ष सम्पूर्ण भारतवासी जनता है भाषायी वर्णसंस्कृत है हिंदी बोलने पढ़ने वाला पिछड़ा एव रोजगार के लिए भटकता नज़र आता है जैन एव बौद्ध धर्म के सनातन से प्रवर्तन के बाद भी वैदिक संस्कृत का लोप नही हुआ था क्योकि इन दोनों के प्रवर्तक जन्म से सनातनी थे एव उसमें प्याप्त कुरीतियों को समाप्त जो उनके अनुसार थी करने के उद्देश्य से प्रवर्तन कर जीवन दर्शन के नए सिंद्धान्त प्रस्तुत किये जो मूल रूप से वैदिक सिद्धांतो के ही संशोधन थे मगर 1234 वर्षो कि गुलामी एव भयाक्रांत करने वाली बर्बरता ने वैदिक व्यवस्थाओं का समूल नाश कर दिया परिणाम स्वरूप समाज मे जीवन रक्षा के लिए धर्म परिवर्तन करना ही बेहतर समझा जिससे विशुद्ध वैदिक समाज भी बदरंग बहुरंगी हो गया जिसके परिणाम भारत को आजादी के समय एव अब तक भुगतने पड़ रहे है 1234 वर्षो कि गुलामी के बाद मिली स्वतंत्रता में भारतीय समाज स्वय को ही नही समझ पा रहा था जिस समाज मे नारी को गृह लक्ष्मी देवी का दर्जा प्राप्त था एव कन्या को नव दुर्गा के रूपो में स्वीकार किया जाता था आजादी के 75 वर्षों बाद जब राष्ट्र स्वतंत्रता का अमृतमहोत्सव मना रहा है और अमृत काल मे प्रवेश कर चुका हो भारतीय समाज मे कन्या नारी महिला औरत कि स्थिति में सकारात्मक सुधार विकास परिवर्तन तो अवश्य हुये है मगर अपेक्षित कदापि नही।
वर्तमान कि एक समस्या लिंग परीक्षण एव भ्रूण हत्या दहेज हत्या ,बलात्कार ,पारिवारिक विघटन से बढ़ते तलाक के मामलों ने भारतीय समाज को बहुत पीछे धकेल दिया है पश्चिमी समाज मे विवाह एक समझौता है जो टूटता रहता है मगर नारी समाज पर फर्क इसलिये नही पड़ता कि वहाँ नारी समाज पुरुषों के समान ही आत्म निर्भर है वैवाहिक समझौते के टूटने से उनके ऊपर बहुत फर्क नही पड़ता भारत मे बहुसंख्यक विवाहित महिलाएँ पति के ऊपर निर्भर रहती है और उसमें स्वंय के जीवन का विश्वास रखती है जो वैदिक संस्कृत है मगर उनको सम्मान् देने से आज का समाज कदराता है कन्याओं की अपेक्षा लड़को को अधिक तरजीह दिया जाता है कन्या को बोझ समझा जाता है कारण कन्या कि शिक्षा दीक्षा एव विवाह बोझ लगता है जिसके कारण लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण कि हत्या की नई परम्परा ने सामाजिक सोच कि विकृत के स्वरूप जन्म ले लिया संतोष कि बात यह है कि वर्तमान आंकड़े बताते है कि समाज की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आया है और भारत मे लिंगानुपात की दर 1000 पुरुषों पर 1020 औरतों का है जो सकारात्मकता की सांमजिक सोच को स्प्ष्ट करता है।
लेकिन महिलाओं कन्याओं के प्रति आपराधिक घटनाओं दहेज हत्याओं के अद्यतन आंकड़ों पर गौर करे तो चौकाने वाले तथ्य सामने आते है महिलाओं पर हुए अपराध के कुल 4,28,278 मामले दर्ज हुए जो 64.5% प्रति एक लाख कि दर से है प्रतिदिन 87 बलात्कार 49 मर्डर के मामले प्रति एक लाख में 15.3% कि औसत दर से बढ़ा है दहेज के 25000 मामले प्रति वर्ष एव प्रति घण्टे एक दहेज उत्पीड़ितन का औसतन मामला आता है परिवार न्यायालयों में कुल 4.70 करोड़ मामले विचाराधीन है लिविंग रिलेशन का जस्टिस के जी कृष्णमूर्ति का फैसला मनोरंज का साधन अधिक दहेज प्रथा से मुक्ति का साधन कम है हालांकि यह नीर्णय ही दहेज प्रथा कि भयंकर समस्या के निवारण एव धीरे धीरे सांमजिक स्वीकारता के आधार पर विद्वान न्यायाधीश द्वारा दिया गया था।
बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार ने अवश्य सामाजिक सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन का शुभारंभ किया है।
सरकारी अर्धसरकारी सेना आदि सेवाओ में महिलाओं की स्थिति—
केंद्र सरकार में कुल 30.87 अधिकारियों कर्मचारियों में महिलाओं कि संख्या 33739 यानी कुल 11 % है भारत मे कुल डॉक्टरों की संख्या 12.89 लाख में महिलाओं की भागीदारी 13% है 15 लाख कुल इंजीनियरो में महिलाओं की भागीदारी मात्र 10% है कुल सी ए 88983 महिलाएं है जो 7 %है आई सी ए आई 54960 महिलाएं है।
भारत मे उच्च सेवाओ में महिलाओं के योगदान पर गौर किया जाय तो भारतीय प्रसाशनिक सेवाओ को 1951 में सम्मिलित किया गया तब पहली अधिकारी अन्ना राजन मलहोत्रा बनी थी वर्तमान में कुल महिलाओं की संख्या 11569 है भारतीय पुलिस सेवा कि बात करे 1972 में पहली महिला आई पी एस किरण बेदी जी बनी थी वर्तमान में महिलाओं का योगदान 9% है ।
नेता जी ने आजाद हिंद फौज में रानी लक्ष्मी बाई रेजिमेंट कि स्थापना कि थी एव लक्ष्मी स्वामीनाथन को कैप्टन नियुक्त किया सेना में कुल महिलाओं की संख्या 9118 है सेना कि पहली महिला अधिकारी प्रिया झिंगन थी,।
भारत मे महिलाओं की पसंद के क्षेत्र है अध्यपन,एयर होस्टेज ,पब्लिक रिलेशन,ह्यूमन रिसोर्सेज, इंजीनियरिंग फैसन डिज़ाइन डॉक्टर्स बनाना है।
प्राइवेट नौकरियों में एव स्व रोजगार में महिलाओं की संख्या एव प्रतिशत बहुत भी 15 प्रतिशत है भारत के ग्रामीण अंचलों में महिलाएं स्व रोजगार में सिलाई,बुनाई,बकरी पालन,या दुग्ध व्यवसाय में अधिक है।
हर वर्ष प्रत्यक्ष शारदीय एवं वासंतिक नवरात्रि नारी के नौ दुर्गा नारी के नौ रूपों की आराधना के रूप में मनाई जाती है मगर आदि शक्ति आधी आबादी नारी शक्ति आज भी अपेक्षित सम्मान एवं सहभगीता के अवसर हेतु संघर्ष रत है ।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।