“नारी नहीं जहान हूँ हिंद की मैं शान हूँ”
कविता :- शीर्षक
“नारी नहीं जहान हूँ
हिंद की मैं शान हूँ”
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झुका नहीं सके कोई
वो प्रचंड आसमान हूँ,
अस्मत मेरी पे जो ताकता
उसके लिये हैवान हूँ,
क़ायनात की मैं अप्सरा
सृस्टि की पहचान हूँ ।
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जला नहीं सके मुझे
धधकते अंगार भी,
ग़र समझो तो आसाँ बहुत
वरना मैं चट्टान हूँ,
झाँसी भी,अविनाशी भी मैं
सीता सी महान हूँ !
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नारी नहीं जहान हूँ
हिंद की मैं शान हूँ…………
फूल भी हूँ शूल भी मैं
कुलों की आन-बान हूँ,
लक्ष्मी और शक्ति भी मैं
शिव का गुमान हूँ,
गौर से तू देख तो
कण-कण में विराजमान हूँ ।
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अंत भी अनंत भी मैं
वेद और पुराण हूँ,
अर्पण भी हूँ, समर्पण भी मैं
ममता की मैं खान हूँ,
यामिनी हूँ, दामिनी भी मैं
ब्रह्मांड का मैं मान हूँ ।
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नारी नहीं जहान हूँ
हिंद की मैं शान हूँ…………….
तारिणी भी नारायणी भी मैं
शौर्यता का बखान हूँ,
कोख़ में मैं पालती
भीम सा बलवान हूँ,
मैदानों में मात दूँ
मैं वीर पहलवान हूँ ।
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आँगन की तुलसी भी मैं
कुछ पल की वहां मेहमान हूँ,
वार दूँ जहान सारा
मैं ऐसी क़द्रदान हूँ,
फिर भी मिले दुत्कार क्यों
ये सोच के हैरान हूँ ।
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नारी नहीं जहान हूँ
हिंद की मैं शान हूँ……………….
गुरू भी मैं, गुरुर भी
शिष्य भी गुणवान हूँ,
सागरों में उठती जो
लहरों के उफ़ान हूँ,
“दीप” की मनमीत भी मैं
आख़िर तो एक इंसान हूँ ।।
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नारी नहीं जहान हूँ
हिंद की मैं शान हूँ……………..!!
कुलदीप दहिया ” मरजाणा दीप ”
हिसार ( हरियाणा )