नारी देह नहीं, देश है
नारी देह नहीं, देश है
इनका सम्मान, देश का सम्मान है
इनका अपमान, देश का अपमान है
इनका पिछड़ना, राष्ट्र का पिछड़ना है
इनपर आघात, देश पर आघात है
इनकी मजबूती, राष्ट्र की मजबूती है
फिकरें और छेड़खानी
राष्ट्र की बदनामी है
यह और कुछ नहीं
नादानी है, नादानी है
मां, बहन, भाभी है
सासु, पत्नी, शाली है
सभी से रिश्ता है
इसे रिसने मत दो।
लेकिन,
नारी को भी अपनी जमीन
तलाशनी होगी
उसे भी सुदृढ़ होना होगा।
नारी दास नहीं , देवी है
वह जानती है, संघर्ष करना
असुरों का संघार करना
मानवता का कल्याण करना
कांटों पर रहना, गुलाब की तरह खिलना
जीवन को गति देना
सुखमय संसार बनाना
उसे उसका सम्मान, उसे लौटना होगा।
नारी केवल श्रद्धा नहीं है
वह शक्ति है
वह प्रेरणा है
वह संजीवनी है
वह सह- भागिनी है
वह कठोर नहीं, कोमल है
उसे दया नहीं, उसका हक देना है
और उसे भी अपने हक के लिए
समाज से संसद तक जाना है।
नारी देह नहीं, देश है
इनका सम्मान, देश का सम्मान है।
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स्वरचित: घनश्याम पोद्दार
मुंगेर