नारी दिव्य स्वरूप
(1) नारी में दिव्य स्वरूप का दर्शन,
उन्नति प्रगति कल्याण का साधन।
नारी समाज की एक निर्मात्री शक्ति,
ये धारण,पोषण,संवर्द्धन और भक्ति।
स्वयं महामाया प्रकृति रूप में सृष्टि,
नारी पर कभी नहीं डालना कुदृष्टि।
नारी शक्ति चाहे तो निर्माण करती,
जब चाहे तो मिटा कर रख देती।
(2)
नारी शब्द में ही महानता
मातृत्व, ममता, मृदुलता।
नारी धर्म में सहनशीलता,
नेत्र में करूणा व सरलता।
नारी प्रेम प्यार की सरिता,
कष्ट सहने की अपूर्व क्षमता।
(3)
स्वर्ग की सकार प्रतिमा,
नरी रूप धरा की गरिमा।
नारी स्वयं महामाया,
कोमल पवित्र काया।
(4)
नारी जीवन की अमृत धारा,
जो जमीं पर स्वर्ग को उतारा।
-लक्ष्मी सिंह