नारी तेरे रूप अनेक
जग को जीवन देने वाली एक नारी
मानव समुदाय के उद् भव का कारण भी एक नारी
श्रद्धा इच्छा मनु की पत्निया
जगत् जननी माँ दुर्गा देवी रुप में
सबका भरण पोषण करने वाली
अन्न धन से परिपूर्ण करने वाली भी
धरती माँ अबोध बालक को जन्म देकर
उसका अस्तित्व बनाने वाली माँ भी
एक नारी बालक की पृथम पाठशाला भी माँ
सबकी इच्छाओं को पुरी करने वाली
गृह जिम्मेदारी निभाने वाली एक नारी
ममता के रुप में भाई संग प्यार लुटाने वाली
हंसी ठिठोली करने बहन घर को स्वर्ग बनाने वाली
संस्कारों को कायम रखने वाली
निज इच्छाओं से परे रहकर
दुसरो की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली
बहु के रूप में हर सुख दुःख में साथ निभाने वाली
पत्नी के रूप में एक नारी
उसके बिना तो मानव अस्तित्व ही नहीं
जन्म से लेकर मृत्यु तक
कभी माँ कभी बहन
कभी पत्नी चाची मामी भाभी बनकर
सभी रूपों में एक नारी
उसके बिना तो मानव अस्तित्व ही नहीं
कभी धरती माँ के रूप में
कभी माँ के रूप में
सभी रूपों में
फिर किस बात पर अपने को सर्वोपरि बता रहा तु मनुष्य
तेरा अस्तित्व नारी के बिना तो कुछ भी नहीं ।