नारी तेरी व्यथा अनमोल
सुरक्षित नहीं थी इस जहां में
हो गई माँ की कोख असुरक्षित ||
छीप ही गया है बचपन तेरा
खनखनाहट भी खो गयी हैं तेरी ||
लुट जाती सरेआम है अस्मत
भाई रावण सा यहां नहीं कोई है ||
ब्याह के जाती ससुराल को तुम
झोंक दी जाती अग्नि में ज़िंदा ||
है पराकाष्ठा सहनशक्ति की तेरी
ममता हुई ना कींजित विचलित ||
प्यार का गहरा सागर बसा है
दिल में अथाह दर्द भरा हैं ||
नवजीवन को देने वाली
हर रंग में तु ढलने वाली ||
नारी तेरी व्यथा अनमोल
नारी तेरी व्यथा अनमोल ||