नारी जीवन की धारा
चली मैं चली मैं,
खुद को है मढ़ ने,
नारी हूँ मैं नारी,
संवारा मैंने जग को,
मुझसे है जीवन,
जीवन इस धरा पे,
जलती हुई मैं,
लौ हूँ दिया की,
रोशन जो करती,
सहती हुई मैं,
दर्द को जिया है,
शक्ति हूँ शक्ति मैं,
खुद को गढ़ी हूँ ,
जननी भी हूँ मै,
रूप हूँ माँ का,
हृदय में छुआ है,
आँसू नयन में,
बल की वो धारा,
टूटे कभी ना,
नारी वो काया,
जहाँ भी रही मैं,
खुद ही ढली हूँ,
बँधी नहीं कहीं भी,
बंधन न बना है,
बहती चली मै,
ऐसी हूँ धारा,
जीती हुई मैं,
रंगों को है भरती,
देखो जब भी,
तस्वीर जो सजती,
जीवन के हर रूप में,
मैं ही खिली हूँ,
धीरे-धीरे खुद को,
यूँ ही मैं गढ़ती,
मेरी ये काया,
सबकी है छाया,
फिर भी ना कहती,
खूब हूँ निखरती,
नारी हूँ मैं नारी,
खुद ही उभरती ।
रचनाकार ✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।