नारी जागो, मत मानो हार
बाहर एसिड अटैक घर मे हिंसा
हुआ वर्कप्लेस पर दुर्व्यवहार,
मानसिक यातना दुष्कर्म झेले
सुन्दर कृति और ये व्यवहार।
नारी जागो, मत मानो हार।
प्रेयसी बन निभाये वादे वफा
बहुत चाहा और किया प्यार,
फिर भी न मिला वो, जो चाहा
जीत की बात क्या, मिली हार।
नारी जागो, मत मानो हार।
पत्नी बन खुद किया समर्पण
घर की शोभा बच्चों का दुलार,
निभाई परिवार की जिम्मेदारी
चैन सम्मान नही मिली दुत्कार।
नारी जागो, मत मानो हार।
अन्तर्मन आहत हुआ गया मान
झेले दंश सही पीडा दुर्व्यवहार,
मेरे अपने कुछ कह भी दें तो क्या
सोंच के रही चुप ये है परिवार।
नारी जागो, मत मानो हार।
अपना पति जीवन और सुहाग
सजते आभूषण करती श्रृंगार,
जीना मरना दिन रात नाम किये
फिर भी न रीझे ये बेदर्द यार।
जागो नारी, मत मानो हार।
आवाज दो हल्ला करो दुनियां सुने
हो वर्कप्लेस चाहे घर या बाहर,
बोलो न सहो जुल्म चुप्पी तोड़ो
मान सम्मान की बराबर हकदार।
नारी जागो, मत मानो हार।
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह