नारी जगत आधार….
नारी जगत आधार….
नवरातों में कर रहे, माता का गुणगान।
घर-घर में नारी सहे, कदम-कदम अपमान।।
सहती दारुण दुख अकथ,रहती अविचल मौन ।
नारी-व्यथा अथाह अति, बाँचे उसको कौन।।
नयन मीन सम जल भरे, अधर थिरकता हास ।
देवी त्याग – ममत्व की, जिये विरोधाभास ।।
अपनी सुविधा के लिए, जोड़-तोड़ कर कर्म।
नियम पुरुष ने खुद गढ़े, कहा उन्हें फिर धर्म।।
अपराधों का आँकड़ा, बढ़ जाता हर बार।
नर पर आश्रित नारियाँ, सहने को लाचार।।
जागो जग की नारियों, लो अपने अधिकार।
त्याग तुम्हारा ये पुरूष, बना रहे हथियार।।
जानें समझें बेटियाँ, अपना हर अधिकार।
निज पैरों पर हों खड़ी, कहे न कोई भार।।
रहें सुरक्षित नारियाँ, मिले उन्हें भी मान।।
लक्ष्य यही लेकर चले, मिशन शक्ति अभियान।
वृत्ति आसुरी त्याग दो, बनो मनुष्य महान।
नारी का आदर करो, पाओ खुद भी मान।।
पीछे कहाँ अब नारी, गढ़ती नव प्रतिमान।
बना रही हर क्षेत्र में, नित नूतन पहचान।।
अब नारी के रूप में, हुआ बहुत बदलाव।
हर क्षण आगे बढ़ रही, पाँव नहीं ठहराव।।
नारी बहुत सशक्त है, दीन-हीन मत जान।
सकल सृष्टि की जननी, शक्ति-पुंज महान।।
नारी नर की जननी, नारी जगत- आधार।
ये सृष्टि क्या सृष्टा भी, नारी बिन निरधार।।
नर की यह सहधर्मिणी, क्योंकर सहे अन्याय।
है समान अधिकारिणी, सुलभ इसे हो न्याय।।
चेरी नहीं ये तेरी, गलतफहमी न पाल।
बिगड़ गयी तो सोच ले, क्या कर देगी हाल।।
नारी अब अबला नहीं, करती डटकर वार।
अपने पैरों पर खड़ी, नहीं किसी पर भार।।
पुरुष सदा हावी रहें, चले उन्हीं का राज।
दब रह जाती बीच में, नारी की आवाज।।
नारी जीवन-धारिणी, नारी जग-आधार।
वस्तु समझ उपभोग की, मत कर अत्याचार।।
बिन नारी जीवन नहीं, समझो ए, श्रीमान।
शक्ति स्वरूपा कामिनी, सदा करो सम्मान।।
बस प्रकृति ही एक है, नारी का उपमान।
जननी होकर भी सदा, पाती है अपमान।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद