नारी के मन की पुकार
संस्कृतियों का पाठ पढ़ाना ,
सबको अच्छा लगता है ,
मर्यादा का मान बचाना,
सबको अच्छा लगता है ।।
पुरा काल से चली आ रही ,
हीन दशा उस नारी की ,
जय हो उस समाज की जय हो ,
केंद्र बनी नारी जिसकी ।।
सीता माँ को जब रावण ,
हरकर लंका ले जाता है ,
उनकी होती अग्नि परीक्षा ,
पुरुष परीक्षा नहीं होती ।।
जो आदि शक्ति अविनाशिनि है ,
उनको इस जग ने नहि छोड़ा,
क्या कसूर था उनका इसमें ,
क्यों ऐसा हो जाता है ?
गौतम ऋषि की नारि अहल्या ,
इंद्र से जब छ ली जाती है ,
बेकसूर वो सती अहल्या ,
तब पाहन बन जाती है ।।
लेकिन अब बस बहुत हो चुका ,
अब हमको नही डरना है ,
मर्यादा को ध्यान में रखकर ,
सच के लिए हमें लड़ना है।।
क्या सृष्टि होती इस जग में,
यदि नारी नहीं होती ,
सत्यवान के प्राण क्या बचते,
यदि सती सावित्री नहि होती ।।
इससे ज्यादा और क्या कहूँ ,
नारी का सम्मान करो ,
नारी होती गृह की लक्ष्मी ,
उस पर तुम विश्वास करो ।।
अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा”✍️✍️