नारी की वेदना
नारी की वेदना
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उसे अच्छा नहीं लगता खुश हो कर रहना।
मन भी परेशां और दुःख से भरा रहता।
अपने दर्दों को हृदय में छिपा कर
रखा है ।
वो! कौन एक विधवा औरत है।
उसको सजना, संवरना भी नहीं
भाता है ।
सादा जीवन ,सादा कपड़े ही
भाते उसको ।
अगर मुस्कुराती है तो उसकी
बातें बनती है ।
बेबस और लाचार, बेचारी ही काफी है,
पूजा पाठ में जाना सब उसका
अशुभ समझते हैं।
समाज के नियमों का करती वो ,
पालन है ।
अपना जीवन एक पतझड़ सा कर,
गुमशुम सी रहती है।
पर! तुझको समाज से लड़ना होगा।
आगे जहां में बढ़ना होगा ।
सबला बन वीरांगना की तरह,
दुनिया का सामना करना होगा।
तू लाचार नहीं ,तू भी तो एक नारी है,
एक देवी है—-
तेरे भी क ई सपने , अरमान रहे होंगे।
जो पल भर में सब बिखर गए,
सबको संजोकर जहां में बढ़ के आगे।
तुझको पूरे करने होंगे ।
हार नहीं जाना तुम,
जग की आपाधापी में।
हिम्मत सदा रखना तुम,
विकट कठिनाईयों में ।
कोई साथ नहीं तेरे फिर भी।
हौसला रखना—
अपने को कर बुलंद इतना कि,
दुनिया तेरी मिसाल दे।
काम ऐसे कर जगत में,
कि सब तेरा ही नाम लें।
तुझको भी खुश होकर जीने का
अधिकार है—-
तुझको खुशियां देना सबका उपकार है
तू कभी मत हारना, तू कभी मत थकना।
हिम्मत और अटल साहस से,
तू आगे मंजिल पर बढ़ना।
यही नारी की जीत है,
यही नारी का गौरव है ।
नारी तू नारायणी तू शक्ति,
और सहनशीलता की मूर्ति है।
हे! नारी तू धन्य है!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,