नारी की नज़र में नारी
नारी की नज़र में नारी
जीवन है वो जल है
अस्तित्व है हमारा कल है
सूर्य का उदय है वो
अंधियारे का हल है
आंसू हो या मुस्कुराहटें
वो हर लम्हा हर पल है
तरल है हर घट में समाती
नाराज हो ड़ूबे शहर हैं
अखंड इरादे पाषांड़ जैसे
जीत उसकी ड़गर है
अपराजिता वो निर्भया
दरिन्दों को उनका ड़र है
मकान बहुत हैं शहर में
जहां नारी वहीं घर है
– क्षमा ऊर्मिला