नारी की गौरव गाथा
नारी पर गीत गजल कविता, शायरी करते रहे।
रह-रह बात सशक्तिकरण पे, जोर दें कहते रहे।।
नारी बल को कम ना कहना, पाठ सब पढ़ते रहे।
नारी शक्ति इतिहास पर यों, पुष्प मन चढ़ते रहे।।
वेद पुराण में देव-माता, ऋषी कथा बता रहे।
नन्हें-मुन्ने बच्चे बन खुद, नार शक्ति जता रहे।।
नारी जग जन्मदायिनी यों, महिमा सुनाते रहे।
भूत भविष्य वर्तमान शीश अपने झुकाते रहे।।
देव पाताल मृत्यु लोक यों, नारी गुणगान करे।
जयवंता जीजा अनुसुइया, सीख पर गुमान करे।।
नाम अवंती रानी लक्ष्मी, शक्ति अवतार धरे ।
मदर टेरेसा कल्पना ज्यो जीवन पतवार करे।।
फिर बदला इतिहास धरा का, नारी मार खा रही।
अत्याचार से बचने मानो, रोज आग लगा रही।।
कैसी विकृति हाय मानवता, क्यों पाप है कर रही।
दैव – शक्ति नारी रूप पर, अत्याचारी बन रही।।
जल थल वायु झंडा वजूदी नार लहराती रही।
त्याग प्रेम शौर्य गाथा पे दस्तक बनाती रही।।
नारी बिना न जग संभव “जय” भावना बहती रही।
नारी को शत-शत नमन यहाँ, लेखनी कहती रही।।
संतोष बरमैया “जय”
कुरई, सिवनी, म.प्र.