नारी की अभिव्यक्ति
है सहमती सिसकती रुक रुक के निज को निरखती..
पूछती है हे विधाता . क्यूं है तू नारी बनाता??
सहे थपेड़े वक़्त के..और सुलगते तप को..
वेदना ही व्यक्त थी अव्यक्त बन के रह गई।
बांट ती है सब सबको..खुद खड़ी नि:शब्द सी..
शक्ति स्वरूपा होने का जिसको मिला वरदान था..
हे विधाता क्यूं यातनाओं भर की
मात्र रह गई उसकी अभिव्यक्ति?
नया जीवन जो गढ़ती है..खुद ही खुद को हारकर..
मिलता है क्या पुरुषों तुम्हे सम्मान उसका मारकर
अर्द्धांगिनी कह तो दिया..पर मान ना किया..
शून्य से संसार बनाया..फिर भी ना कोई अधिकार लिया
हे विधाता..
तू बता वो झेलती क्यूं हर दंश है..
जबकि नारी के बिना ये दुनिया ही निरवंश है.!
क्यूं है वो अबला बेचारी..अपनो के आगे जो हारी.
दर्द से यूं चूर है वो..
क्या इतना ही मजबूर है वो.??
हर कदम दे अग्नि परीक्षा..
पूछे ना कोई उसकी इच्छा।
अब समय है आ गया..वो स्वयं को पहचान ले..
करना नहीं अब अनुकरण..खुद ही तू दे सबको शरण..
तू ही दुर्गा ..तू ही काली, तू ही सरस्वती का स्वरूप है..
पापियों के नाश को ..दिया तुझे चंडी का रूप है।
खोल तू अपने पंख जरा अब
आकाश में उड़ कर जाना है..
वस्त्र पे ना वार सहेंगे ..दुनिया को बतलाना है।
अब लज्जा छलनी ना होगी..
अश्रु नहीं बहाना है..!
अब देना है सबको ही ..
एक नई नई अनुभूति है..!
अब तक था जो भी बीत गया वो..
अब एक नए रूप की प्रस्तुति है.!
समय का पहिया घूम चुका है..
इस बात की कुछ संतुष्टि है
कुछ गलती हो तो क्षमा कर देना..
कोशिश मेरी एक छोटी है..
मित्रो .. “मदीहा” के शब्दों में
ये “नारी की अभिव्यक्ति” है.!
✍️#_”मदीहा”अय्याज़ फरीदा
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं।