नारी कहने को देवी है, मगर सम्मान कहाँ है,
नारी कहने को देवी है, मगर सम्मान कहाँ है,
बातें होती हैं हज़ार, बस अमल का नाम कहाँ है।
जिसकी हिफाज़त में लंका जल गई थी कभी,
आज उसकी चीखें सुनने वाला इंसान कहाँ है।
रावण बहुत हैं यहाँ, हर गली हर मोड़ पे देखो,
पर कोई राम यहाँ, उसकी जुस्तजू का बयान कहाँ है।
बेटियों के सपनों को कुचला हर सुबह जाता,
और कहते हैं हमें उनसे कोई गिला, कोई अरमान कहाँ है।
मोमबत्तियों से रोशनी दिखाने का ढोंग है जारी,
इंसाफ का रास्ता, वो चिरागों का जहान कहाँ है।
देवी के रूप में सजाते हैं, पर इज़्ज़त नहीं देते,
हर घर में पिंजरा बनाकर, कहते हैं सम्मान कहाँ है।
बातें सम्मान की, मगर घर में चैन नसीब नहीं,
ऐसे इरादों और सोच का आसमान कहाँ है।