नारी और वृक्ष
शास्त्रों में है कहा गया ,
वेद-पुराणो ने भी कहा ,
ऋषि -मुनि ,साधू -संतो ने भी
दोहराया ,
इस जगत को हर तरह से
समझाया।
नारी की हो जहाँ पूजा ,
नारी को मिले जहाँ सम्मान ,
वहां स्वर्ग होता है।
खुशियाँ ,सुख-समृधि वही बस्ती है।
। और जहाँ हो वृक्ष आपार।
जीवन वहीँ साँस लेता है ,
और बड़ा पेड़ ,
वट-वृक्ष ,
घर के एक बड़े-बुज़ुर्ग के सामान होता है ,
जिसकी छत्र -छाया में बचपन,
। किलकारियां मारता है ,
आनंद खिलता है ,
संस्कृति ,सभ्यता ,संस्कार
फलीभूत -पुष्पित होते हैं।
इसीलिए नारी का अपमान ,
और वृक्षों को काटना
( जबकि वोह हरे भरे हो )
दंडनिये अपराध है।
यह घोर पाप है।
मगर हाय ! यह लोभी , कामी ,
दुष्ट ,अहंकार, ईमान से कितना गिर चुका है ,
वोह नारी ,प्रकृति और वृक्ष का,
मूल्य ही नहीं समझ पा रहा,
शास्त्रों में तो यह भी लिखा है ,
”विनाश काले विपरीत बुध्ही ”
तो भविष्य में होने वाले प्रलय को,
भी वोह स्वयं ही आमंत्रित कर रहा है।
यदि नहीं समझ पा रहा नारी , प्रकृति और वृक्ष की निस्वार्थ सेवा को , कोमल भावनायों को ,
इनके त्याग और प्रेम को,
तो निश्चय ही अपनी बर्बादी क
खुद हो कब्र खोद रहा है।