नारी-अभिनंदन
***** नारी-अभिनंदन ****
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औरत तेरे कई काम हैं,
निलता कभी न आराम है।
तन – मन से रहे सेवा करती,
सुबह से हो जाती शाम है।
सुबह – सवेरे जल्दी उठ कर,
देर रात तक नहीं विश्राम है।
बहन,बुआ ,पत्नी और मौसी,
दादी,नानी,चाची,ताई नाम है।
आँचल – दूध नयनों में पानी,
सुख-दुख सहती सरेआम है।
नर्स,सेवक,शिक्षक बन कर,
दिन-चर्या यही नित्यकाम है।
घर-गृहणी को घरेलू कहकर,
भूलते करती कितने काम है।
सदबुद्धि निष्ठा सच्चे मन से,
पार करती बहुत आयाम है।
मनसीरत मन स्त्री अभिनंदन,
चरणों मे छिपा हर धाम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)