नारी अबला नहीं
“बचपन से सुनते आये हैं ,
भारत में नारी की पूजा होती है !
हर घर और हर एक मंदिर में
दुर्गा की मूरत होती है !
जहाँ कन्या को नवदुर्गा मान ,
चरण कमल हम छूते हैं !
जहाँ नारी है लक्ष्मी समान ,
हम उसका पूजन करते हैं !
स्त्री का हर रूप सुसज्जित और शुशोभित ,
मानते जिस धरती पर हैं !
आज उसी धरती पर प्रतिपल प्रतिक्षण ,
पीड़ित हर एक नारी है !
आज चीख उठ रही हर ओर से ,
क्यों मानव बन गया अत्याचारी है ?
लक्ष्मीबाई की धरती पर ,
बन गयी अबला हर एक नारी है !
क्या दया नहीं आती उन ,
कुटिल क्रूर अन्यायी को ?
जब अपने पापों के कर्मो से ,
रौंदते हैं किसी जीवन को !
क्यों नहीं पिघलता उनका दिल ,
मासूमो की चीत्कारों से ?
क्यों नहीं रुकते उनके हाथ ये ,
ओछी हरकत करने से ?
क्यों मर रहे हैं वे प्रतिक्षण ,
माँ बेटी और पुत्री को ?
क्यों भीख मांग रही हर एक नारी ,
अपनी लाज बचाने को ?
तिरस्कार है उस समाज का ,
नारी की रक्षा जो न कर पाया !
महाभारत के महायुद्ध से ,
जो शिक्षा न ले पाया !
भूल गया है ,यह समाज ,
दुर्गा और काली को अब !
खून खौल रहा हर बाला का ,
सहनशीलता टूटेगी अब ,
नपुंसक हो गया समाज
ये प्रमाण दिखलाने को !
नारी ही आगे आएगी ,
नारी की लाज बचाने को !
( पूजा सिंह )