नारायणी
जीवन की भगदड़ में, कुछ पल, जी लेती है वो ।
फिसलते लम्हों को भी,किसी तरह सम्भाल लेती है वो।।
घड़ी की रफ्तार से कुछ क्षण चुराकर, मुस्कुरा देती है वो ।
अपनी मुस्कुराहट से भोर का भी अभिनंदन करती है वो।।
प्रभा से पूर्व, सूर्योदय उपरांत, हर घर को प्रकाशित रखती है वो ।
आ जाऐं कठिन राहें अगर, हौसले बुलंद रख खुद के, प्रेरित सभी को करती है वो।।
सुबह से सांझ, दिनभर में न जाने कितने रुप बदलती है वो ।
कभी ममता का आंचल फैलाए माँ, तो कभी लाडली बिटिया बनती है, वो।।
हर पल खिलखिलाती सखी , तो कभी झुंझलाती बहन है वो ।
कभी शिक्षिका, कभी उपचारिका, अन्नपूर्णा, कात्यायिनी, अर्धांगिनी बन जाती है वो।।
सहस्र रुपों में समाकर, जीवन के हर पल , हर क्षण, हर लम्हा जी लेती है वो।
और कोई नहीं, बस नारी के रुप में नारायणी है वो।।