नानी की कहानी
परियों की एक रानी थी ।
और बूढ़ी एक नानी थी ।
साँझ ढले दादी माँ ,
सुनातीं एक कहानी थीं ।
पीलू जंगल का राजा ।
धूर्त सियार वो मंगलू ।
चंपा चालक लोमड़ी ,
एक जादू की टोकरी ।
कालीन भी उड़ जाता ।
चाँद ज़मीं उतर आता ।
गर्मी का मारा बेचारा ,
सुरज भी पीता पानी ।
भले बुरे का भेद सिखाती ।
झूँठ फ़रेब से दूर हटाती ।
सत्य मार्ग पर चलना कैसे,
हर कहानी यह पाठ पढ़ाती ।
कितना सुगम था वो बचपन ।
मस्ती का था वो अल्लड़पन ।
आया यौवन बीता बचपन ,
दादी नानी से अब अनबन ।
दादी नानी बृद्धाश्रमो तले ।
सूना है अब यह बचपन ।
जाए किस से सुनने वो ,
खत्म हुए अब तो आँगन ।
खत्म हुए अब तो …
…. विवेक दुबे “निश्चल”©….
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