नानी का घर बड़ा याद आता है..
नानी रही ना अब वहां फिर भी नानी का घर कहलाता है,
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता है।
जहां रात को देर से नींद और सुबह जल्दी होश आता है,
मुझ जैसा जो कभी चाय नही पीता उसे भी चाय का चस्का आजता है।
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता है।
जहां होश ना रहता भूख का मस्ती से पेट भर जाता है,
मगर बात हो जब उस तड़के वाली छाछ की तो सबके हाथ मे ग्लास नज़र आता है।
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता है।
अरसा हो गया उस कूलर की हवा खाए जिसके आगे सोने को लड़ा जाता है,
भईया को मालूम था मुझे डर लगता है…तभी भूत के किस्सों से डराया जाता है।
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता है।
जहां आसमान थोड़ा ज्यादा नीला नज़र आता है,
एक साल हो गया अब तो आजा बहनों का फोन आता है।
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता है।
जहां हर रात मुझे अपने घर का सपना आता है,
और दिन भर दो दिन और रुक जाऊं ये खयाल आता है।
मुझे नानी का घर बड़ा याद आता ………..|