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27 Dec 2016 · 1 min read

नादान परिंदेे ( नारी प्रेरणात्मक कविता )

नादान परिंदे , उड़ जाओ
जाल बिछाये जो बैठे है
उनका दाना मत खाओ
क्या जानो तुम इनकी भाषा
दरिदे बन कर आयें है
जाल मेे जो तुम फँस जाओगे
नोच तुमको खायेगेंं
बेच तुमको आयेगें
नादान परिंदे , उड़ जाओ

बू आती इनकी आँखो से
मर चुकी भावना इनकी है
हाड़ – माँस के पुतले मे
बेजान बने ये बैठे है
कंकाल बने ये बैठे है
नादान परिंद , उड़ जाओ

प्यास इनकी बुझ न सकेगी
चेतना इनकी जग न सकेगी
तुमको ही कुछ करना होगा
जाल ले कर उड़ना होगा
नादान परिंदे उड़ जाओ
कंचन गुप्ता
______________________

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 522 Views
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