■ तज़ुर्बे की बात…
■ अहम छोड़ें,,,पहल करें…!!
“नादानों के जीवन का
सबसे बड़ा व ख़ूबसूरत हिस्सा
सामने वाले की पहल के
इंतज़ार में ज़ाया होता है।”
तात्पर्य बस इतना सा है कि तमामों की उम्र लखनवी तहज़ीब (पहले आप) के थोथे प्रदर्शन में बीत जाती है। फिर उन्हें मन मसोस कर जफ़र साहब की तरह लिखना पड़ता है-
“उम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिन।
दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में।।”
बेहतर है कि पहल हम ख़ुद करें। ख़ुद को अहम माने बिना।।
【प्रणय प्रभात】