नाजुक देह में ज्वाला पनपे
नाजुक देह में ज्वाला पनपे
कौन सहेगा तपिश यहाँ
बरसों से अब बारिश को
तरस रही है झितिज जहां
लक्ष्मी जैसी बाई कहां अब
वीर शिवा सा योद्धा नहीं
कृष्ण सा गुरु नहीं अब
अर्जुन सा शिष्य कहाँ..
पहले जैसा धैर्य कहां अब
मुख पर रख्खी है ज्वाला
चारों ओर जहर है विखरा
पहले जैसी अब हवा कहाँ
बिना दर्द के जख्म नभ दे
मां पर कोई ऐसी दवा कहां
✍️कवि दीपक सरल