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31 Mar 2024 · 1 min read

नाजुक देह में ज्वाला पनपे

नाजुक देह में ज्वाला पनपे
कौन सहेगा तपिश यहाँ
बरसों से अब बारिश को
तरस रही है झितिज जहां

लक्ष्मी जैसी बाई कहां अब
वीर शिवा सा योद्धा नहीं
कृष्ण सा गुरु नहीं अब
अर्जुन सा शिष्य कहाँ..

पहले जैसा धैर्य कहां अब
मुख पर रख्खी है ज्वाला
चारों ओर जहर है विखरा
पहले जैसी अब हवा कहाँ

बिना दर्द के जख्म नभ दे
मां पर कोई ऐसी दवा कहां

✍️कवि दीपक सरल

Language: Hindi
183 Views

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