नाग पंचमी
(नाग जाति के प्रति कृतज्ञता)
श्रावण शुक्ल पंचमी, नाग पंचमी कहलाती है
नाग जाति की पूजा, उनके योगदान को दी जाती है
नाग हमारे दुश्मन नहीं, सच्चे मित्र कहलाते हैं
पर्यावरण और किसान की किसान की,
फसलों के रखवाले हैं
ढेरों दवाई बनती हैं जहर से, वे जीवन देने वाले हैं
शेषनाग के फन पर, सारी धरा टिकी है
क्षीर सागर में शेष शैया पर, विष्णु समाधि लगी है
देव और दानव ने मिल, जब समुद्र मंथन करवाया था
बासुकीनाग की बांधी डोरी, मेरु को अरई बनाया था
शिव शंकर ने नागों को, गले का हार बनाया था
नाग, देवता और मनुज की, ढेरों अकथ कहानी हैं
नाग देवता के योगदान की, पंचमी एक कहानी है
एक बार जब नागों ने,
नाग माता के आदेश की अवहेलना की
क्रोध बस नाग माता ने, जन्मेजय यज्ञ में भस्म होने की शॉप दे दी
घबराए नाग रक्षा को, ब्रह्मा जी के पास गए
ब्रह्मा जी ने सांत्वना दे, रक्षा के उपाय कहे
नागवंश में महात्मा जरत्कारु के, पुत्र आस्तिक होंगे
भस्म होने से बचाएंगे, वही तुम्हारे रक्षक होंगे
तक्षक नाग के डसने से, राजा परीक्षित की मृत्यु हुई
परीक्षित पुत्र जनमेजय ने, नागवंश मिटाने आहुति दई
दुनिया भर की नाग जाति, यज्ञ कुंड में गिरती थी
हाहाकार मचा जग में, न युक्ति कोई मिलती थी
आस्तिक मुनि ने, राजा जनमेजय को समझाया
मत जलो प्रतिशोध की ज्वाला में, न नागों का करो सफाया
आस्तिक मुनि ने योग बल से, दूध नागों पर डाला
श्रावण शुक्ल पंचमी को, उन्होंने नवजीवन दे डाला
नाग पंचमी उसी समय से, भारत में मनाई जाती है
नाग पंचमी की अन्य कथाएं भी, लोक में मिल जाती हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी