नाकाम किस्मत( कविता)
नाकाम किस्मत
मेरी नाकाम किस्मत रही
सदा रुसवाई की राह पर
हम चुप रहकर भी पछताए
कुछ कह कर भी पछताए
अपनी ही बदकिस्मती के कसीदे यूं पढ़े हमने
कभी कुछ कह कर सुनाएं क
भी कुछ पढ़ कर सुनाएं
अपनी ही इबादत के दर्द यूं जगाए
अंधेरी रातों में
कुछ रोकर बिताए कुछ जग कर बिताए दर्द को अपने दिल का नासूर बनाकर
कुछ अश्क बहा कर दिखाएं
कुछ अल्फ़ाज़ में बयान करके जताए अपने ही दिल नाकामी से यूं बेजार हुए अपनी ही बेचारगी का हाल
कुछ दिल में दबाया
कुछ आँखों से जताया