नहीं
गीतिका
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(१२२ १२२ १२२ १२)
नहीं
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कभी दिल किसी का दुखाना नहीं ।
छिपा दर्द दिल का सुनाना नहीं ।।
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नयन मौन होकर करें चुगलियाँ ।
निगाहें किसी से मिलाना नहीं ।।
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उठे पीर तो ओठ लेना दबा ।
मग़र राज दिल का बताना नहीं ।।
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बड़े चैन से सो रहे आँख में ।
कभी आँसुओं को गिराना नहीं ।।
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कहा जुगनुओं ने दमकते रहो ।
न दमके, मिलेगा ठिकाना नहीं ।।
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जले दीप ने एक दिन था कहा ।
किसी ने कभी दर्द जाना नहीं ।।
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बुझे ‘ज्योति’ जब भी ,अँधेरा घिरे ।
जली ज्योतियों को बुझाना नहीं ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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