नहीं
आजकल उसको कोई शिकायत नहीं।
अब उसे मुझसे शायद मुहब्बत नहीं।।
करले दीदार तू हुश्न का दूर से।
प्यार में प्यार की भी इजाजत नहीं।।
मैं झुकी तो वो पल में खुदा हो गए।
क्या जरा सी भी उनमें शराफत नहीं।।
एक टूटा हुआ दिल मेरे पास है ।
और तो उनकी कोई अमानत नहीं।।
गुजरी उसकी गली छुपके देखा मुझे।
हो न हो प्यार पर मुझसे नफरत नहीं।।
होंठ हँसते रहे और नम आँख थी।
झूठ कहता है मेरी जरूरत नहीं।।
शौहरत और दौलत मुहब्बत मिली।
कैसे कह दूँ कि रब की इनायत नहीं।।
चाहना हद से ज्यादा किसी गैर को।
ज्योति ये आपकी ठीक आदत नहीं।।
ज्योति श्रीवास्तव