नहीं सरल राजत्व निभाना
नहीं सरल राजत्व निभाना
राजा तुम्हें समझना होगा ,
राजतिलक होतेे ही तुमको
राजधर्म को जीना होगा ।
इक यज्ञ सा राजा का जीवन
जो प्रजा हित आहुत होता है ,
इक इक जन की सब बातों को
संयम से सुनना होता है ।
अनगिन भूपति हुए देश में
जो जनहित में ही जीते थे ,
अपनी प्रजा के सुख को वे
बंजर भू में भी हल जोते थे ।
हरिश्चंद्र् राजा महादानी
स्वप्न में राज्य दान दिया ,
त्याग राजपाट इक क्षण में
वचन को अपने पूर्ण किया ।
राजपाट का लोभ न जिनको
ऐसे भी राजकुमार हुए हैं
पितृाज्ञा से अभिषेक त्यागकर
वन जाना स्वीकार किए हैं ।
राजा राम बने महा आदर्श
राज धर्म के थे सच्चे सेवक ,
पति पिता के दायित्वों की
बलि चढ़ायी राज्यकर्म पर ।
एक सच्चे राजा का राज्य में
अपना कोई सुख दुःख नहीं
पूछो जरा उन राम के हृदय से
जिन्हें मिला सिया का साथ नहीं
अच्छे बुरे सभी वर्गों की
राज्य में सुननी होती है ,
निज अरमानों की राजा को
चिता जलानी पड़ती है ।
कैसे कह दूँ राम निर्दयी थे
दर्द सिया का नहीं समझे थे !
पर राजा की सहधर्मिणी को
राजधर्म तो संग निभाने थे ।
इक राजपुरुष बन कृष्ण भी
प्रेम और ममता भूल गए ,
राधा यशोदा दोनों को ही
अश्रु के संग छोड़ गए ।
क्रमशः …..
डॉ रीता
आया नगर , नई दिल्ली – 47