नहीं समझता है
दिल की हसरत नहीं समझता है।
वो मुहब्ब्त नहीं समझता है।।
मैं तड़पकर कहीं न मर जाऊँ।
मेरी हालत नहीं समझता है।।
मिलते ही नज़रें झुक गयीं पलकें।
क्या शराफत नहीं समझता है ।।
वो है रब और मन शिवाला सा।
पर इबादत नहीं समझता है।।
गम मिले या खुशी समर्पित हूँ।
मेरी आदत नहीं समझता है।।
हाल ए दिल कह दूँ बातों बातों में।
क्यों शिकायत नहीं समझता है।।
रब की मर्ज़ी थी पा लिया मुझको ।
ये इनायत नहीं समझता है।।
कैसा है मेरा चाहने वाला।
ज्योति चाहत नहीं समझता है।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा