नहीं रोके से रुकते
रोके से रुकते नहीं,अकथ कर्म फल मूल।
मिलते सबको कर्मफल, इसे कभी मत भूल।।
इसे कभी मत भूल,हमेशा कर्म करो सत।
जिससे हों सन्तुष्ट, देवता सबका अभिमत।।
करते सच्चे कर्म,शीश हरिपद में झुकते।
कर्म बने अधिकार,नहीं रोके से रुकते।।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी