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18 Mar 2020 · 1 min read

नहीं रुकता बुलंदी पर

नहीं रुकता बुलंदी पर पहुँचकर लौट आता है
उछालो लाख तबियत से ये पत्थर लौट आता है

कभी सागर,कभी पर्वत,कभी आकाश या जंगल
परिंदा हो कहीं भी शाम को घर लौट आता है

मोहब्बत हो या नफरत बाँट दो पर ये समझ लेना
जो दोगे दूसरों को वो पलटकर लौट आता है

रहे नाराज कितना भी मगर पुचकारने पर ही
ये बच्चा गोद में वापस सिमटकर लौट आता है

चला जाता है जो उसकी कमी पूरी नहीं होती
हाँ इतना है कि यादों में वो अक्सर लौट आता है

गया जो छोड़कर दुनिया न उसकी फिक्र कर संजय
वो इस दुनिया में फिर चेहरा बदलकर लौट आता है

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