नहीं बदलते
रोटी सच की खाते हैं,
पर झूठ पोषते है।
ऐसे नर पशु जीवन में,
ईश्वर को कोसते हैं।।
धर्म कथा कोई भी,
इनके लिए व्यर्थ है।
कर्मधर्म यह मोक्ष न माने,
इनका केवल मूल अर्थ है।।
मूल अर्थ होने पर भी,
ये भीखमंगे होते हैं।
शाही वस्त्र पहनकर भी,
ये चरित्र से नंगे होते हैं।।
कर प्रणाम दूरी अपनाएं,
ऐसे मन और मन्तव्यों से।
सुधर नहीं सकते “संजय” ये,
सतचारित्रिक कर्तव्यों से।।
जय श्रीराम
जै हिंद