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11 Dec 2016 · 1 min read

नहीं नफ़रत से ये मोहब्बत से डरा जाय है

नहीं नफ़रत से ये मोहब्बत से डरा जाय है
दिल- ए- नादान हाय किस तूफ़ां में घिरा जाय है

चाह का पत्थर उठाकर फैंक गया कौन या रब
झील सा दिल बेशुमार लहरों से भरा जाय है

खाते हैं कसमें साथ जीने मरने की फिर भी
जानेवाले के पीछे बता कौन मारा जाय है

दर्द जैसा लगे उसे दर्द मिरा तो बात बने
बिन सोचे समझे जालिम दिए मशवरा जाय है

लफ़्ज़ों में गहराई गर रखी थी तूने तो फिर
क्यूंकर इस तरहा बता जबां से फिरा जाय है

उलझते ही रहे हैं गम-ओ-खुशी के धागे यूं
इस छोर से पकडूं तो हाथ से वो सिरा जाय है

क्यूँ उम्मीद ‘सरु’ बादल से लगाये बैठी है
जिसे खुद नहीं मालूम कि कहाँ सरफिरा जाय है

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