नहीं देहवाली स्त्री
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सौंदर्य के लिए पत्ते और फूल पिरोकर
उद्घोषित करती हुई स्त्रीत्व।
समर्पण की आतुरता से उत्प्रेरित।
दैहिक मर्यादाओं से परे
पौरुष मन को आंदोलित करती
बीज को अंकुरित करने को प्रतिबद्ध
देहवाली स्त्री से परे वह स्त्री।
मुझे प्रेम का अर्थ सिखाती है।
परवाह की परिभाषा बताती है।
समर्पित मन,देह के सुख समझाती है।
जीवीत होते रहने में आस्था बढ़ाती है।
ईश्वर के अस्तित्व में आसरा जुटा देती है।
सूर्योदय और सूर्यास्त में दर्शन दिखाती है।
लुंज-पुंज व्यक्ति से मुझे पुरुष बनाती है।
युद्ध में योद्धा और शांति में बुद्ध बताती है।
सांसरिक वेदनाओं को चुल्लू भरकर पिलाती है।
अध्यात्म वक्ष से और वासना कटि से सुलगाती है।
कामना में काम का मर्दन पढ़ाती है।
हमारा राग,द्वेष,ईर्ष्या,मोह,क्रोध,लोभ,लिप्सा
पारलौकिकता में जलाती है।
वह स्त्री मेरे अंतर्दाह में आग लगाती,बुझाती है।
अग्रदूत सी चलकर वह मेरी देवदूत सी थाती है।
भाग्यवती वह, स्त्री से नारी बनने को प्रस्तुत।
मेरे सम्पूर्ण कायरता को वीरोचित मर्यादा में बांधती है।
अव्यक्त विह्वलता को रगों,नसों के तंतुओं में करती रहती है दफन।
पराजय के अवसाद से खींचकर विजय हेतु कटिबद्ध तन।
काल से परे यौवन की आयु को बहुगुणित करती है वह।
सरिता की मेरी आकुलता को चिड़िया बनाती है वह।
वह मेरी प्रबुद्ध संगिनी की भूमिका में देह से परे मनवाली स्त्री।
मुझे ब्रह्मा का वरदान बनाने वाली ‘नहीं देहवाली स्त्री’।
वह मेरे व्यक्तित्व नहीं कृतित्व पर मोहित हो।
मेरा हर विचार,हर विवेक और तर्क उससे सम्मोहित हो।
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अरुण कुमार प्रसाद 28/10/22